ये मेरा पहला पोस्ट हेँ |
मेरे पिताजी हमेशा मुझे ये शायरी सुनाते थे
मुझे लगा की ये आपको भी सुनादू ...
लगता नहीं है जी मेरा उजारे दायर में
किस की बनी है आलम-ए-नपायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दघ्दर में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में काट गये दो इंतज़ार में
कितना है बदनसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिए
दो गाज़ ज़मीन भी मिल ना सकी कू-ए-यार में
Thursday, January 7, 2010
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